"मोतीबिंद: बुजुर्गों की नजर नहीं, ज़िंदगी पर असर – जानिए कारण, प्रभाव और समाधान"
- Sabir H. Ansari

- Jun 25
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जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर के अन्य अंगों की तरह आंखों की कार्यक्षमता भी कम होने लगती है। विशेषकर 60 वर्ष की आयु के बाद आंखों की बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ जाता है, जिनमें मोतीबिंद (Cataract) सबसे आम और गंभीर समस्या है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें आंख के लेंस पर धुंधलापन आ जाता है, जिससे रोशनी का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और व्यक्ति की दृष्टि धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है। भारत में लाखों बुजुर्ग इस बीमारी से जूझ रहे हैं और अधिकांश मामलों में यह समस्या बिना समय पर पहचान के धीरे-धीरे अंधत्व की ओर बढ़ जाती है।
खासतौर पर गरीब और ग्रामीण परिवारों में यह बीमारी एक बड़ी चुनौती बन जाती है, जहां न तो समय पर जांच हो पाती है और न ही इलाज की उचित व्यवस्था उपलब्ध होती है। जानकारी और संसाधनों की कमी के कारण लोग वर्षों तक धुंधली दृष्टि के साथ जीते हैं, जिससे उनकी स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और जीवन की गुणवत्ता पर गहरा असर पड़ता है। हालांकि, राहत की बात यह है कि मोतीबिंद एक पूरी तरह से इलाज योग्य बीमारी है। आधुनिक चिकित्सा तकनीकों और जागरूकता के माध्यम से समय रहते इसका निदान और उपचार संभव है, जिससे लाखों बुजुर्गों को फिर से देखने और आत्मनिर्भर जीवन जीने का अवसर मिल सकता है।
बुढ़ापे में मोतीबिंद का प्रभाव:
बुढ़ापे में मोतीबिंद का प्रभाव केवल आंखों की रोशनी तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह व्यक्ति के संपूर्ण जीवन को प्रभावित करता है। सबसे पहला और स्पष्ट प्रभाव दृष्टि ह्रास के रूप में सामने आता है, जहां व्यक्ति को धीरे-धीरे धुंधला दिखने लगता है, और चीज़ों की स्पष्टता समाप्त हो जाती है। यह स्थिति धीरे-धीरे इतनी बढ़ जाती है कि साधारण काम भी कठिन लगने लगते हैं। इसके कारण बुजुर्गों की स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न होती है – जैसे वे खाना बनाना, पढ़ना, चलना-फिरना, टीवी देखना या दवाइयाँ समय पर लेना जैसे दैनिक कार्य करने में अक्षम हो जाते हैं। इस तरह की निर्भरता उन्हें मानसिक रूप से परेशान करने लगती है।
जब किसी व्यक्ति को बार-बार दूसरों की मदद की ज़रूरत होती है, तो उसका आत्मविश्वास और आत्मसम्मान प्रभावित होता है, जिससे वह मानसिक तनाव या डिप्रेशन का शिकार हो सकता है। कई बार वे खुद को बोझ समझने लगते हैं और एकाकी जीवन जीने लगते हैं। इसके साथ ही, दृष्टि की कमी के कारण वे सामाजिक आयोजनों, पारिवारिक मेल-मिलाप या धार्मिक स्थलों पर जाना भी बंद कर देते हैं, जिससे उनका सामाजिक जीवन सीमित हो जाता है। इस तरह मोतीबिंद न केवल आंखों की रोशनी छीनता है, बल्कि बुजुर्गों से उनका आत्मसम्मान, सामाजिक जुड़ाव और सक्रिय जीवनशैली भी छीन लेता है।
भारत में मोतीबिंद से प्रभावित :
भारत में मोतीबिंद एक गंभीर और व्यापक नेत्र समस्या है, जो अंधत्व के प्रमुख कारणों में से एक मानी जाती है। आंकड़ों के अनुसार, देश में अंधेपन के लगभग 70% मामलों के लिए मोतीबिंद जिम्मेदार है। यह बीमारी विशेष रूप से बुजुर्गों में आम है, लेकिन इसका प्रभाव आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कमजोर वर्गों पर और अधिक गहरा होता है। हर वर्ष भारत में लगभग 30 से 35 लाख लोग मोतीबिंद से प्रभावित होते हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या ग्रामीण इलाकों, झुग्गी-झोपड़ियों और निर्धन परिवारों से संबंधित लोगों की होती है, जहां स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच सीमित है और समय पर जांच या उपचार कराना कठिन होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और भारत सरकार के राष्ट्रीय अंधता नियंत्रण एवं दृष्टि हानि निवारण कार्यक्रम (NPCBVI) की रिपोर्टों के अनुसार, भारत में 50 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 80% बुजुर्ग किसी न किसी रूप में मोतीबिंद से ग्रसित होते हैं। यह आंकड़ा न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि बढ़ती उम्र के साथ नेत्र रोगों की रोकथाम और इलाज के लिए विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है। यदि समय रहते इस समस्या की पहचान कर ली जाए, तो साधारण सी सर्जरी के माध्यम से लाखों लोगों की दृष्टि और जीवन की गुणवत्ता बेहतर की जा सकती है।
गरीब परिवारों में मोतीबिंद होने के मुख्य कारण:
गरीब और वंचित परिवारों में मोतीबिंद होने के पीछे कई सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण होते हैं, जो समय के साथ गंभीर रूप ले लेते हैं। सबसे प्रमुख कारण है कुपोषण, जो इन परिवारों में आम बात है। विटामिन A, C और एंटीऑक्सीडेंट्स जैसे पोषक तत्वों की कमी आंखों के लेंस पर बुरा असर डालती है, जिससे मोतीबिंद की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, इन परिवारों में नेत्र परीक्षण और नियमित जांच की अनदेखी की जाती है, क्योंकि या तो इसके लिए संसाधन नहीं होते या फिर जानकारी का अभाव होता है। कई बार लोग आंखों की हल्की परेशानी को मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे समस्या धीरे-धीरे बढ़ जाती है।
इसके अतिरिक्त, धूप और प्रदूषण भी एक बड़ा कारण है। गरीब परिवारों के लोग अक्सर खेतों, सड़कों या निर्माण स्थलों पर लंबे समय तक बिना किसी सुरक्षा के काम करते हैं, जिससे उनकी आंखें सूर्य की हानिकारक किरणों और धूल-धुएं के संपर्क में आती हैं। लगातार ऐसे माहौल में रहने से लेंस को नुकसान पहुंचता है, और मोतीबिंद की शुरुआत हो जाती है। वहीं, अनुवांशिक प्रवृत्ति भी एक कारण हो सकता है – यदि परिवार में पहले किसी सदस्य को मोतीबिंद हुआ है, तो अन्य लोगों में भी इसका खतरा बढ़ जाता है।
डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का उचित इलाज न मिलना भी आंखों को प्रभावित करता है। इन बीमारियों का संबंध रेटिना और लेंस से होता है, और बिना नियंत्रण के ये स्थिति मोतीबिंद को जन्म दे सकती है। अंत में, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी इस समस्या को और गंभीर बना देती है। ग्रामीण और दूर-दराज़ के इलाकों में नेत्र चिकित्सकों की कमी, अस्पतालों की दूरी और आर्थिक संसाधनों का अभाव लोगों को समय पर इलाज से वंचित रखता है। इन सभी कारणों की वजह से गरीब परिवारों में मोतीबिंद एक आम लेकिन गंभीर बीमारी बनकर उभरती है, जो बुजुर्गों के जीवन को अंधकार में धकेल देती है।
मोतीबिंद से बुजुर्गों में होने वाली प्रमुख दिक्कतें:
धुंधली दृष्टि:मोतीबिंद के कारण बुजुर्गों को धीरे-धीरे चीज़ें साफ दिखाई देना बंद हो जाती हैं। वे पढ़ने, लिखने, सिलाई या टी.वी. देखने जैसे सामान्य कामों में कठिनाई महसूस करने लगते हैं।
रात में देखने में परेशानी:मोतीबिंद से पीड़ित बुजुर्गों को रात के समय या कम रोशनी में चलना-फिरना बेहद कठिन हो जाता है। इससे उनके गिरने या दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है।
प्रकाश और चमक से चकाचौंध:दिन के समय या उजाले में बाहर निकलने पर आंखों में तेज रोशनी सहन नहीं होती, जिससे असहजता और चिढ़चिढ़ापन होता है।
रंगों की पहचान में दिक्कत:मोतीबिंद से प्रभावित व्यक्ति को रंग फीके या धुंधले नजर आते हैं, जिससे कपड़ों, दवाओं या खाने-पीने की चीजों की पहचान में मुश्किल होती है।
सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने में डर:कमजोर दृष्टि के कारण बुजुर्गों को ऊंचाई और गहराई का सही अंदाज़ा नहीं लग पाता, जिससे उन्हें गिरने का डर सताता है और वे चलने-फिरने से कतराते हैं।
गिरने की घटनाएं:धुंधली नज़र के कारण रास्ते में गड्ढा, पत्थर या अन्य अवरोध दिखाई नहीं देते, जिससे बुजुर्गों के गिरने और चोटिल होने की संभावना बढ़ जाती है।
आत्मनिर्भरता में कमी:जब व्यक्ति को अपने दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है, तो उसे मानसिक तनाव, चिढ़चिढ़ापन और आत्मसम्मान में गिरावट महसूस होती है।
सामाजिक दूरी:देखने में असमर्थता और असहजता के कारण बुजुर्ग सामाजिक गतिविधियों, धार्मिक आयोजनों या मेलजोल से दूरी बना लेते हैं, जिससे उनका अकेलापन और अवसाद बढ़ सकता है।
अवसाद और मानसिक दबाव:लगातार दूसरों पर निर्भर रहने, अकेलापन और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट के कारण मोतीबिंद से ग्रसित बुजुर्गों में अवसाद (डिप्रेशन) की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
स्वास्थ्य जोखिमों में वृद्धि:दृष्टि की कमी के कारण बुजुर्ग दवाएं समय पर नहीं ले पाते, ठीक से भोजन नहीं कर पाते, जिससे अन्य स्वास्थ्य समस्याएं जैसे हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज आदि का प्रबंधन भी कठिन हो जाता है।
मोतीबिंद से कैसे बचा जा सकता है?
संतुलित आहार: विटामिन A, C, E और जिंक युक्त भोजन जैसे गाजर, हरी सब्जियां, आंवला, नींबू का सेवन करें।
धूप से बचाव: धूप में चश्मा पहनें जिससे UV किरणों से आंखें सुरक्षित रहें।
धूम्रपान व शराब से परहेज करें
डायबिटीज और बीपी को नियंत्रित रखें
हर 6-12 महीने में आंखों की जांच कराएं (विशेष रूप से 50 वर्ष के बाद)
मोबाइल और टीवी स्क्रीन से उचित दूरी रखें
यदि मोतीबिंद हो गया है, तो क्या करें?
नेत्र विशेषज्ञ से सलाह लें
दवाओं या चश्मे से यह ठीक नहीं होता
समय पर ऑपरेशन (Cataract Surgery) करवाना ही एकमात्र उपाय है
सरकारी और NGO के द्वारा निशुल्क या रियायती दरों पर सर्जरी की सुविधा उपलब्ध है
मोतीबिंद की सर्जरी कितनी सफल:
ऑपरेशन की प्रक्रिया: आधुनिक "फेको" या "लेज़र" तकनीक से 15–20 मिनट में होती है।
भर्ती: आमतौर पर एक दिन में छुट्टी मिल जाती है।
दृष्टि में सुधार: 2 से 7 दिन में देखने में बदलाव दिखता है।
सफलता दर: 98% से अधिक मामलों में मरीज की दृष्टि पूरी तरह लौट आती है।
टिकाऊपन: एक बार सर्जरी के बाद दोबारा मोतीबिंद नहीं होता।
निष्कर्ष: बुजुर्गों को अंधकार नहीं, रोशनी चाहिए
मोतीबिंद कोई स्थायी अंधापन नहीं है—समय पर पहचाना जाए, तो बुजुर्ग अपनी दृष्टि और आत्मनिर्भरता दोनों वापस पा सकते हैं। हमें ज़रूरत है कि हम अपने घर, मोहल्ले और गांव में रहने वाले बुजुर्गों को समय पर नेत्र जांच के लिए प्रेरित करें और उन्हें सरकारी योजनाओं या निशुल्क नेत्र शिविरों की जानकारी दें।
"हर बुजुर्ग को रोशनी से जोड़ना, हमारी सामाजिक ज़िम्मेदारी है।"




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