भारत में कुपोषण बनाम मोटापा – एक विरोधाभास की कहानी
- Sabir H. Ansari

- Jul 15
- 3 min read

भारत आज एक अनोखी और चिंताजनक स्वास्थ्य समस्या का सामना कर रहा है – एक ही समय में कुपोषण और मोटापे का बोझ। एक ओर लाखों लोग अल्पपोषण, एनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से जूझ रहे हैं, तो दूसरी ओर तेजी से बढ़ती संख्या में लोग असंतुलित खानपान और निष्क्रिय जीवनशैली के कारण मोटापे और जीवनशैली जनित रोगों की चपेट में आ रहे हैं। यह स्थिति भारत में “पोषण का दोहरा संकट” बन चुकी है।
कुपोषण और मोटापा – दोनों की स्थिति को समझें
कुपोषण: एक पुरानी लेकिन आज भी जीवित समस्या
कुपोषण विशेष रूप से निम्न पोषण की स्थितियों को दर्शाता है, जैसे:
बौनापन (Stunting) – उम्र के अनुसार कम लंबाई
दुबलापन (Wasting) – लंबाई के अनुसार कम वज़न
कम वज़न (Underweight) – उम्र के अनुसार कम वज़न
सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी – जैसे आयरन, विटामिन ए, आयोडीन आदि
NFHS-5 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019–21) के अनुसार:
5 वर्ष से कम उम्र के 35.5% बच्चे बौने हैं
19.3% बच्चे दुबले (wasted) हैं
32.1% बच्चे कम वज़न के हैं
15-49 वर्ष की 57% महिलाएं एनीमिक (रक्ताल्पता) से ग्रस्त हैं
6–59 महीने के 67.1% बच्चे एनीमिक हैं
मोटापा: शहरी भारत की बढ़ती चुनौती
जहां एक ओर ग्रामीण भारत कुपोषण से पीड़ित है, वहीं शहरी और संपन्न वर्ग तेजी से मोटापे और जीवनशैली जनित बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।
NFHS-5 के अनुसार:
15-49 आयु वर्ग की 24% महिलाएं और 22.9% पुरुष अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं
शहरी क्षेत्रों में यह दर और भी अधिक है: महिलाएं – 33.2%, पुरुष – 29.5%
UNICEF (2020) के अनुसार, 5-19 वर्ष के 5% बच्चे अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं
मोटापे के प्रमुख कारण:
जंक फूड और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की अधिकता
शारीरिक गतिविधियों में कमी
मोबाइल और टीवी पर अत्यधिक समय
पोषण और व्यायाम की जानकारी की कमी
क्षेत्रीय असमानता: एक राष्ट्र, दो तस्वीरें
ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण का स्तर अभी भी बहुत ऊंचा है
शहरी और उच्च आय वर्ग में मोटापा, डायबिटीज और हृदय रोग तेजी से बढ़ रहे हैं
बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में बच्चों में बौनापन और दुबलापन अधिक है
दिल्ली, केरल, पंजाब, तमिलनाडु जैसे राज्यों में मोटापे की दर अधिक है
इस पर ध्यान देना क्यों ज़रूरी है?
आर्थिक हानि: भारत को कुपोषण के कारण हर साल लगभग $10 अरब डॉलर की आर्थिक क्षति होती है
स्वास्थ्य जोखिम: दोनों ही – कुपोषण और मोटापा – रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, बीमारियों का खतरा, और कार्य प्रदर्शन में गिरावट लाते हैं
पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रभाव: कुपोषित माताएं अक्सर कम वजन वाले बच्चों को जन्म देती हैं, जिससे यह समस्या एक चक्र बन जाती है
समाधान क्या हो सकते हैं?
1. एकीकृत पोषण कार्यक्रमों को मज़बूत करना
पोषण अभियान, आंगनवाड़ी (ICDS), मिड-डे मील जैसे कार्यक्रमों की पहुंच और गुणवत्ता सुधारना
आदिवासी और दूरस्थ क्षेत्रों तक पोषण सप्लीमेंट पहुँचाना
2. पोषण शिक्षा को बढ़ावा देना
बच्चों, माताओं और किशोरियों को संतुलित आहार और विविधता के बारे में जागरूक करना
स्कूलों में पोषण शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करना
3. शहरी स्वास्थ्य रणनीति
स्कूलों और कार्यस्थलों में व्यायाम और खेल को प्रोत्साहित करना
जंक फूड पर नियंत्रण और फूड लेबलिंग को अनिवार्य बनाना
4. समुदाय की भागीदारी
स्वयं सहायता समूहों, पंचायतों और NGO को जागरूकता अभियानों में शामिल करना
5. नीति निर्माण और निगरानी
ब्लॉक और जिला स्तर पर नियमित पोषण सर्वेक्षण और डेटा विश्लेषण
ऐसी नीति बनाना जो कुपोषण और मोटापा दोनों से निपट सके (Double-duty Actions)
निष्कर्ष
भारत का पोषण संकट अब केवल भूख या गरीबी तक सीमित नहीं है। यह एक असंतुलित विकास की कहानी है – जहां एक ओर भूख है, तो दूसरी ओर थालियों में अधिकता। इस दोहरे संकट से निपटने के लिए ज़रूरी है कि हम एक समावेशी, क्षेत्र-विशेष और समुदाय-आधारित रणनीति अपनाएं।




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